IAS GS प्रश्न पत्र 1 हेतु 10 मुख्य विषयों पर उत्तर लेखन अभ्यास : प्रथम और दृतीय विश्व युद्ध के प्राथमिक कारण – IAS मुख्य परीक्षा 2017 के लिए उत्तर लेखन के अभ्यास से बहुत मदद मिलती है। इससे पता चल जाता है कि कैसे अपने समय को विभिन्न प्रश्नों के लिए वितरित किया जाए और कैसे बिंदुओं पर प्रकाश डाला जाए, जिससे अधिक अंक प्राप्त किये जा सकें।
उत्तर-लेखन प्रक्रिया का सबसे पहला चरण यही है कि उम्मीदवार प्रश्न को कितने सटीक तरीके से समझता है तथा उसमें छिपे विभिन्न उप-प्रश्नों तथा उनके पारस्परिक संबंधों को कैसे परिभाषित करता है? सच तो यह है कि आधे से अधिक अभ्यर्थी इस पहले चरण में ही गंभीर गलतियाँ कर बैठते हैं। अतः इससे बचने की जरुरत है।
IAS GS प्रश्न पत्र 1 हेतु 10 मुख्य विषयों पर उत्तर लेखन अभ्यास : प्रथम और दृतीय विश्व युद्ध के प्राथमिक कारण !
प्रश्न : प्रथम और दृतीय विश्व युद्ध के प्राथमिक कारण क्या थे? स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध से यूरोप की धरती रक्तरंजित हो गई थी। इससे पहले विश्व के किसी भी युद्ध में, न तो इतनी विशाल सेनाओं ने भाग लिया और न ही इतनी अधिक संख्या में सैनिक हताहत हुए। 1918 में जब यह युद्ध समाप्त हुआ तो यूरोप तथा विश्व के अन्य देशों को यह आशा थी कि अब शांति के एक नये युग का सूत्रपात होगा तथा इस युद्ध को दी जाने वाली संज्ञा – ‘‘सभी युद्धों को समाप्त करने वाला युद्ध’’ (The War to end all Wars) सार्थक होगी। 1919 के पेरिस शांति सम्मलेन में विश्व के प्रमुख राजनीतिज्ञों ने ऐसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की कोशिश की, जिससे शांति चिरस्थायी हो सके। परन्तु 1931 से कुछ ऐसी अपशकुनकारी घटनाओं का चक्र शुरु हुआ जिससे यूरोप में तनाव बढ़ने लगा और सामूहिक सुरक्षा (Collective Security) की व्यवस्था का व्यावहारिक रुप में अंत होने लगा। कुछ ही वर्षों में यह स्पष्ट दिखने लगा कि इस महाद्वीप के प्रमुख देश युद्ध की ओर अग्रसर हैं। 1 सितंबर 1939 में हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण ने एक ऐसी श्रंखला प्रतिक्रिया (Chain reaction) आरम्भ की, जिसने सभी विश्व शक्तियों को संघर्षरत कर दिया।
प्रथम विश्वयुद्ध
विश्व के इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914 ई. से 11 नवंबर 1918 ई.) के मध्य संसार के तीन महाद्वीप यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच जल, थल और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र और इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध का नाम दिया गया। प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष (लगभग 52 महीने) तक चला था। करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अनुमानतः एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध खत्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएं फिर से निर्धारित हुईं और अमेरिका निश्चित तौर पर एक ‘सुपर पावर’ बन कर उभरा।
प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत 28 जुलाई 1914 ई. में हुई। यह 4 वर्ष तक चला और 37 देशों ने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया। प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण ऑस्ट्रिया के राजकुमार फर्डिंनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हुई हत्या थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र दो खेमों में बंट गई थी। धुरी राष्ट्रों का नेतृत्व जर्मनी के अतिरिक्त ऑस्ट्रिया, हंगरी और इटली जैसे देशों ने भी किया तो मित्र राष्ट्रों में इंगलैंड, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा फ्रांस थे। गुप्त संधियों की प्रणाली का जनक बिस्मार्क था और ऑस्ट्रिया, जर्मनी और इटली के बीच त्रिगुट का निर्माण 1882 ई. में हुआ।
अगर हम इसके प्राथमिक कारणों को खोजना शुरू करते हैं तो न जाने कितने कारणों की लिस्ट हमारे समक्ष गुंजायमान हो जाती है और हम यह भी देख पाएंगे कि युद्ध से पहले फ्रांस एक दम अकेला था। जर्मनी के साथ रूस, आस्ट्रिया-हंगरी और इटली जैसे देश भी थे। इस लिहाज से जर्मनी का खेमा बहुत ही ताकतवर दिखता है पर घटनाक्रम में परिवर्तन होता है और जर्मनी के खेमे से इंग्लैंड और रूस खुद को अलग कर लेते हैं। इस नाटकीय घटनाक्रम से अब फ्रांस का खेमा मजबूत हो जाता है। सरसरी तौर पर देखने पर यह कहा जा सकता है कि संसार के कुछ देश अपने अहम को सिद्ध करना चाहते थे और वह खुद की ताकत के दम पर विश्व पर राज करना चाह रहे थे। पर अगर हम और सूक्ष्म दृष्टि डालें तो अवगत हो सकते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के असली मायने में क्या कारण थे- इन्हें राष्ट्रीयता, मीडिया, हथियार बेचने की होड़ और युवराज आर्कडयूक प्रफांसिस पफर्डिनेंड एवं उसकी पत्नी की हत्या को केंद्र में रखा जा सकता है।
दृतीय विश्व युद्ध
पहले विश्वयुद्ध में हार के बाद जर्मनी को वर्साय की संधि पर जबरन हस्ताक्षर करना पड़ा। इस संधि के कारण उसे अपने कब्ज़े की बहुत सारी ज़मीन छोडनी पड़ी, किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करने की शर्त माननी पड़ी, अपनी सेना को सीमित करना पड़ा और उसको पहले विश्व युद्ध में हुए नुकसान की भरपाई के रूप में दूसरे देशों को भुगतान करना पड़ा। 1933 में जर्मनी का शासक एडोल्फ हिटलर बना और तुंरत ही उसने जर्मनी को वापस एक शक्तिशाली सैन्य ताकत के रूप में प्रर्दशित करना शुरू कर दिया। इस बात से फ्रांस और इंग्लैंड चिंतित हो गए जो की पिछली लड़ाई में काफ़ी नुक़सान उठा चुके थे। इन सब बातों को देखकर और अपने आप को बचाने के लिए फ्रांस ने इटली के साथ हाथ मिलाया और उसने अफ्रीका में इथियोपिया- जो उसके कब्ज़े में था- को इटली को देने का मन बना लिया। 1935 में बात और बिगड़ गई जब हिटलर ने वर्साय की संधि को तोड़ दिया और अपनी सेना को बड़ा करने का काम शुरू कर दिया।
जैसे जैसे समय बीतता गया तनाव बढता रहा। यूरोप में जर्मनी और इटली और ताकतवर होते जा रहे थे और 1938 में जर्मनी ने आस्ट्रिया पर हमला बोल दिया फिर भी दुसरे यूरोपीय देशों ने इसका ज़्यादा विरोध नही किया। इस बात से उत्साहित होकर हिटलर ने सदेतेनलैंड जो की चेकोस्लोवाकिया का पश्चिमी हिस्सा है और जहाँ जर्मन भाषा बोलने वालों की ज्यादा तादात थी वहां पर हमला बोल दिया। 1937 में चीन और जापान मार्को पोलों में आपस में लड़ रहे थे। जापान धुरी राष्ट्र के समर्थन मे था, क्यूंकी वो एशिया मे अपनी धाक जमाना चाहता था। सितम्बर 1939 में सोविएत संघ ने जापान को अपनी सीमा से खदेड़ दिया और उसी समय जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। फ्रांस, इंग्लैंड और राष्ट्रमण्डल देशों ने भी जर्मनी के खिलाफ हमला बोल दिया परन्तु यह हमला बहुत बड़े पैमाने पर नही था सिर्फ़ फ्रांस ने एक छोटा हमला सारलैण्ड पर किया जो की जर्मनी का एक राज्य था। धीरे-धीरे बात बढ़ती गयी और दूसरे विश्व युद्ध शुरू हो गया।
हमारे द्वारा दिए जा रहे उत्तर UPSC की सिविल सेवा परीक्षा (IAS परीक्षा) के मानक उत्तर न होकर सिर्फ एक प्रारूप हैं। जिससे अभ्यर्थी उत्तर लेखन की रणनीति से अवगत हो सकेगा। वह उत्तर में निर्धारित समयसीमा में कलेवर को समेटने और समय प्रबंधन की रणनीति से परिचय पा सकेगा। जिससे वह सम्पूर्ण परीक्षा को समयसीमा में हल करने में समर्थ होगा।
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