IAS मुख्य परीक्षा GS पेपर-2 के 10 महत्वपूर्ण टॉपिक्स | लोकसभा और विधानसभा चुनाव का एक साथ आयोजन- संघ लोक सेवा आयोग अक्टूबर के महीने में सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का आयोजन करेगा। इस परीक्षा का उद्देश्य एक छात्र को परखने से है जो शासन, संविधान, राजनीति, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की समझ के आधार से संबंधित है। समस्या यह है कि चाहे कितनी ही अच्छी तैयारी कर ली जाए और भले ही कितना ज्ञान अर्जित कर लिया जाए फिर भी परीक्षा को लेकर हमेशा अनिश्चितता का भय रहता ही है।
इस डर पर काबू पाने के लिए IAS मुख्य परीक्षा के GS पेपर-2 के लिए 10 महत्वपूर्ण टॉपिक्स आपसे साझा कर रहे हैं, जिससे आप इन टॉपिक्स पर अपनी पकड़ मजबूत कर पाएं और आप परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
आज का टॉपिक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विमर्श से संदर्भित है।
IAS मुख्य परीक्षा GS पेपर-2 के 10 महत्वपूर्ण टॉपिक्स | लोकसभा और विधानसभा चुनाव का एक साथ आयोजन
प्रश्न : भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार करते हुए इससे होने वाले लाभों व इसके कार्यान्वयन में उपस्थित बाधाओं व चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
उत्तर: भारत में 1967-68 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। परंतु, 1967-68 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले विघटित हो जाने से यह प्रक्रिया बाधित हो गई। हाल ही में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने फिर से इस बात पर ज़ोर दिया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिये।
एक साथ चुनाव के लाभः
- वर्तमान में अलग-अलग चुनाव होने से देश को भारी मात्रा में धन खर्च करना पड़ता है। लेकिन एक साथ चुनाव कराने से देश के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियों के धन की भी बचत होगी।
- अलग-अलग समय पर होने वाले चुनाव सरकार की विकास की नीतियों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इसका मुख्य कारण आदर्श आचार संहिता का अधिरोपण है। एकीकृत चुनाव से दीर्घकालीन नीतियों के क्रियान्वयन में बाधाएँ नहीं आएंगी।
- असामयिक चुनाव जरूरी सेवाओं तक जनता की पहुँच में बाधक है। इस तरह निर्धारित अवधि में चुनाव आम लोगों के जीवन को सरल व विकासात्मक गतिविधि को तय समय-सीमा में सफल बनाने के लिये आवश्यक है।
- अलग-अलग समय पर चुनाव सरकारी मशीनरी पर अतिरिक्त बोझ डालता है क्योंकि सशस्र बल व केंद्रीय कर्मचारियों की चुनाव में होने वाली नियुक्ति से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। एकीकृत चुनाव कराने से उन्हें राहत मिलेगी।
- इसके अतिरिक्त चुनाव में बड़ी मात्रा में धन का निवेश भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारणों में सबसे ऊपर है। इस क्रम में चुनाव की बारंबारता में रोक भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मज़बूत कदम साबित हो सकता है।
एकीकृत चुनाव के कार्यान्वयन में बाधाएं व चुनौतियाँः
- राजनीतिक पार्टियों में मतैक्यता का अभाव, जिससे पार पाना काफी मुश्किल कार्य है।
- क्षेत्रीय दलों का मत है कि मतदाता में प्रायः एक समय में एक ही दल को चुनने की प्रवृति होती है जिससे एकीकृत चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है।
- देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिये पर्याप्त संख्या में अधिकारियों व कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
- चुनाव आयोग के मुताबिक एक साथ चुनाव करने के लिये संविधान संशोधन की भी आवश्यकता होगी।
- इन बातों के अतिरिक्त विशषज्ञों का मानना है कि ‘एक देश – एक चुनाव’ की धारणा देश के संघात्मक ढाँचा के विपरीत सिद्ध हो सकता है।
यह सत्य है कि एक साथ चुनाव सम्पन्न कराना पदाधिकारियों की नियुक्ति, ई.वी.एम. की आवश्यकताओं व अन्य सामग्रियों की उपलब्धता के दृष्टिकोण से एक कठिन कार्य है। इस सन्दर्भ में स्थायी संसदीय समिति की अनुशंसा कि चुनाव दो चरणों में आयोजित किये जाने चाहिये, काफी उचित नज़र आती है। पहले चरण में आधी विधानसभाओं के लिये लोकसभा के मध्यावधि में और शेष का लोकसभा के साथ। इससे संसाधनों का अपव्यय भी नहीं होगा और लोकतान्त्रिक गतिशीलता भी बनी रहेगी। यहाँ विधि आयोग की उस अनुशंसा को भी महत्त्व दिया जाना चाहिये जिसके अनुसार जिस विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के आम चुनावों के 6 माह पश्चात् खत्म होना हो, उन विधानसभाओं के चुनाव तो लोकसभा चुनावों के साथ करा दिये जाएँ लेकिन 6 माह पश्चात् विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा हो जाये तब परिणाम जारी किया जाये।
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