Published on: July 21, 2018 8:30 PM
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विपक्ष के लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 20 जुलाई को 11 घंटों की लंबी बहस चली, जिसके बाद मोदी सरकार ने सदन में अपना बहुमत साबित कर दिया है। वोटिंग के बाद सदन में विपक्ष का लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया है। प्रस्ताव के पक्ष में कुल 126 मत पड़े जबकि विपक्ष में 325 मत पड़े।
अविश्वास प्रस्ताव यह जांचने के लिए पेश किया जाता है कि जो सरकार सत्ता में है उसके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी सहयोगी है या नहीं। भारतीय संसद में अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष पेश करता है। अविश्वास प्रस्ताव तब पेश किया जाता है जब विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन का बहुमत खो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं होता है। अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है उनकी मंजूरी के बाद दस दिनों के अंदर इस पर चर्चा होती है। भारत में सबसे पहले 1963 में जवाहरलाल नेहरु की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था, जबकि दुनिया में पहला अविश्वास प्रस्ताव 1782 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में लाया गया था। बहरहाल, वर्ष 2003 के बाद यह पहली बार है जब विपक्ष ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है।
अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए कम से कम 50 लोकसभा सदस्यों की जरूरत होती है। अविश्वास प्रस्ताव जीतने में अगर सत्ता पक्ष नाकामयाब हो जाता है तो उसे सत्ता छोड़नी पड़ती है और पार्टी का जो भी सदस्य प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के पद पर होता है उसे अपने पद से इस्तीफा देना होता है। अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल हर देश में किया जाता है, लेकिन हर देश में इसका प्रारूप अलग-अलग होता है। जैसे स्पेन, जर्मनी और इजरायल में अविश्वास प्रस्ताव के साथ विपक्ष को ऐसे व्यक्ति को भी नामित करना पड़ता है जो अविश्वास प्रस्ताव जीतने के बाद सत्ता प्रमुख नियुक्त हो सकें।
इससे पहले विभिन्न मौकों पर कुल 26 अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में आ चुके थे। 20 जुलाई को मोदी सरकार के खिलाफ लाए जाने वाले अविश्वास प्रस्ताव के साथ अब तक के अविश्वास प्रस्ताव की संख्या कुल 27 हो गयी है।
समाजवादी नेता आचार्य कृपलानी ने 1963 में जवाहर लाल नेहरू सरकार के खिलाफ भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। भले ही यह अविश्वास प्रस्ताव 347 मतों से गिर गया था और सरकार पर कोई असर नहीं हुआ लेकिन इसके साथ ही देश में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास शुरू हो गया।
सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का रेकॉर्ड इंदिरा गांधी सरकार के नाम है जिसके कार्यकाल में 15 बार प्रस्ताव पेश किया गया। 1966 से 1975 के बीच 12 बार और 1981 एवं 1982 में तीन बार उनके खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया।
अब तक सिर्फ तीन बार, 1990 में वी.पी. सिंह सरकार, 1997 में एच.डी. देवेगौड़ा सरकार और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया और सरकार गिर गई। 7 नवंबर 1990 को वी.पी.सिंह ने उस समय विश्वास प्रस्ताव पेश किया था जब बीजेपी ने उनसे समर्थन वापस ले लिया था। सरकार के पक्ष में 152 वोट पड़े थे और खिलाफ 356। इस तरह सरकार गिर गई थी। 11 अप्रैल, 1997 को देवेगौड़ा सरकार विश्वास मत हासिल करने में नाकाम रही थी। सरकार के पक्ष में 190 और खिलाफ में 338 वोट पड़े थे। 17 अप्रैल 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोटों से हार गई थी। सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े थे जबकि खिलाफ 270।
आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव 2003 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तत्कालीन एनडीए सरकार के खिलाफ पेश किया था। यह अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह नाकाम रहा था क्योंकि सरकार के पक्ष में 325 वोट पड़े थे और खिलाफ 212 वोट।
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुरी शास्त्री के खिलाफ तीन बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। पहला 1964 में और 1965 के दौरान दो अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे। 1987 में राजीव गांधी सरकार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था लेकिन ध्वनिमत से उस प्रस्ताव को हरा दिया गया था। पी.वी.नरसिम्हा राव के कार्यकाल में तीन बार प्रस्ताव पेश किया गया। अब तक लोकसभा में 13 बार अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई है जिनमें पांच प्रधानमंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
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